नई दिल्ली: क्या आपके साथ कहीं ऐसा हुआ है कि आप दिन भर अपने काम में व्यस्त हैं. आपकी बॉडी पूरी तरह से थक चुकी है. या आप अपने काम से आ रहे हैं तो आपको लगता है अब तो घर जा कर आराम से कुछ घंटों की नींद लेंगे. या आप स्कूल कॉलेज के छात्र हैं तो स्कूल या कॉलेज के समय आप कितना ही अपनी आंखों को खुला रखने की कोशिश करते हैं। लेकिन, नही रख पाते हैं. इसके लिए आप चाहे कितना भी चाय कॉफ़ी पीते हैं, आँखों में ठन्डे पानी के छीटें मारते हैं. लेकिन यह सब कुछ काम नहीं आता. लेकिन जब आप बिस्तर पर पहुंचते हैं. उसके बाद पता नहीं आप सोना चाहते हैं मगर नहीं सो पाते हैं. आपको नींद आने में कई घंटे तक लग जाते हैं. ऐसे में आपको गुस्सा आता है, आप चिड़चिड़े हो जाते हैं. इतनी थकान के बाद भी, आंखों में नींद होने के बावजूद भी आप सो नहीं पाते हैं.
अगर आप थकान होने के बावजूद सो नहीं पाते हैं. इसका मतलब यह है की आपकी बॉडी का सर्केडियन रिद्म बिगड़ गया है. इसका मतलब हमारी शारीर के नेचुरल क्लॉक से है. इसकी मदद से ही हमारा शरीर यह तय करता है की हमें कब सोना है और कब जागना है. हमें किस समय कौन सा काम करना है यह भी हमारे शरीर का नेचुरल क्लॉक ही याद दिलाता है.
यह सारे कारण दिन में ज्यादा सोने से, स्लीप डिसऑर्डर, किसी एंग्जायटी डिसऑर्डर या अन्य फैक्टर के कारण भी हो सकता है. अगर यह स्थिति लम्बे समय तक बनी रही तो यह सेहत के लिए हानिकारक है.
आज हम आपको बताएंगे की आखिर क्यों थके होने के बावजूद आपको नींद नहीं आती है.
एक दिन में 24 घंटे होते हैं. इसमें दिन और रात का सतत क्रम जारी रहता है. ठीक इसी तरह इंसान और सभी जीव जंतु का भी सोने और जागने का क्रम भी जारी रहता है. किसी भी इंसान का दिन में पूरी मुस्तैदी और ऊर्जा से काम करने के लिए रात की नींद लेना जरूरी है.
सर्केडियन रिद्म, जिसे मानव शरीर का इंटरनल टाइमकीपर माना जाता है, हमारे 24 घंटे के दैनिक चक्र को नियंत्रित करता है. यह आंतरिक घड़ी हमारे रोजमर्रा के कार्यों और आदतों का रिकॉर्ड रखती है और हमें जरूरी कामों के लिए समय पर सूचित करती रहती है, जैसे एक सेल्फ अलार्म.
सुप्रशिएस्मेटिक न्यूक्लियस (SCN) को शरीर का मास्टर क्लॉक कहा जाता है. सुप्रशिएस्मेटिक न्यूक्लियस (SCN) मस्तिष्क में रहता है. SCN मेलाटोनिन प्रोडक्शन को कंट्रोल करता है. मेलाटोनिन हार्मोन नींद के लिए जिम्मेदार होता है. मेलाटोनिन रिलीज होने के बाद ही हमें नींद आती है.
मेलाटोनिन का स्तर दिन में सूरज की रौशनी में कम रहता है. लेकिन जैसे जैसे दिन ढलता है और अंधेरा बढ़ता है. तब मेलाटोनिन का उत्पादन हमारे शारीर में बढ़ने लगता है. इसका उत्पादन लगातार जारी रहता है. सुबह के तक़रीबन 4 बजे इसका उत्पादन कम होने लगता है.
मेलाटोनिन का स्तर जब हमारे शारीर में बढ़ने लगता है. तब लगभग 2 घंटे बाद हमारा शरीर सोना पसंद करता है. इसके बाद भी अगर कोई व्यक्ति देर रात जागता है या उसे नींद आने में दिक्कत होती है. इसका मतलब यह है कि उसके शरीर का बॉडी क्लॉक ठीक तरीके से काम नहीं कर रहा है.
देर रात जागने से बिगड़ता है सर्केडियन रिद्म
अगर किसी व्यक्ति के सोने और जागने का समय असामान्य है. लेकिन फिर भी वह सही और स्वस्थ महसूस करता है तब कोई दिक्कत वाली बात नही है. लेकिन अगर कोई व्यक्ति बहुत थके होने के बावजूद भी नहीं सो पाता है तो यह समस्या वाली बात है. इसका मतलब उस व्यक्ति का सर्केडियन रिद्म बिगड़ा हुआ है. डिलेड स्लीप फेज सिंड्रोम (DSPS) के लक्षण तब सामने आते हैं जब कोई व्यक्ति सामान्य सोने के समय (रात 10 बजे से 12 बजे के बीच) की तुलना में 2 घंटे या उससे अधिक देर से सोता है. इस कारण सुबह समय पर उठने में मुश्किल होती है. यह समस्या खासकर युवाओं में अधिक देखने को मिलती है.
नींद, थकान और ऊर्जा न होने में फर्क
डॉक्टरों के मुताबिक, नींद, थकान और ऊर्जा न होने में अलग अलग स्थिति होती है. अगर किसी व्यक्ति ने लगातार खूब सारा काम किया है. उसे थकान महसूस होना निश्चित है. इस समय उसे अपने काम से ब्रेक की जरूरत है. जबकि नींद आने का मतलब यह है कि अब आपका शरीर पूरी तरह से आराम करना चाहता है. वहीं अगर आप में ऊर्जा नहीं है तो आप अपना काम पूरी शमता से नहीं कर पाएंगे.
क्या है कारण थकान के बाद भी नींद नहीं आने के
अगर कोई व्यक्ति अत्यधिक थका हुआ होने के बावजूद सूरज डूबने के बाद भी सो नहीं पा रहा है, तो यह डिलेड स्लीप फेज सिंड्रोम (DSPS) का संकेत हो सकता है. अगर ऐसा नहीं है, तो इसके पीछे अन्य संभावित कारण या कई फैक्टर्स हो सकते हैं. इसमें दिन में ज्यादा सोने के कारण, एंग्जायटी और डिप्रेशन, देर रात तक स्मोक करने से, अधिक शराब का सेवन करने से, अधिक कॉफ़ी का सेवन करने से, अधिक स्क्रीन टाइम होने के कारण, शारीर के सर्केडियन रिद्म बिगड़ने और कई अन्य स्लीप डिसऑर्डर है.
दिन में नैप लेने से उड़ जाती है रात की नींद
नैप लेना स्वाभाविक रूप से हानिकारक नहीं है और इसके कई स्वास्थ्य लाभ भी हैं. हालांकि, यदि गलत समय पर या अत्यधिक नैप लिया जाए, तो यह रात की नींद को प्रभावित कर सकता है.
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, लंबी और दोपहर के बाद की नैप से रात की नींद में कठिनाई हो सकती है.
यदि कोई व्यक्ति नैप लेना चाहता है, तो उसे सलाह दी जाती है कि वह हर दिन एक ही समय पर नैप ले. इससे शरीर अपनी नेचुरल क्लॉक को समन्वयित कर सकेगा और नैप को एक नियमित हिस्से के रूप में पहचान सकेगा.
एंग्जायटी के कारण होती है नींद खराब
अगर दिमाग में अत्यधिक हलचल हो रही है, तो नींद आना मुश्किल हो सकता है. एंग्जायटी के कारण दिमाग कभी-कभी इतनी तेजी से चलता है कि नींद प्रभावित हो जाती है.
एंग्जायटी डिसऑर्डर के कारण नींद न आना एक सामान्य लक्षण है. एंग्जायटी के कारण सतर्कता और उत्तेजना बढती है. इसके कारण नींद आने में और देर हो सकती है.
नींद की समस्या हो सकता है डिप्रेशन
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में 2019 में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, डिप्रेशन से पीड़ित 90% लोगों को अच्छी नींद न आने की समस्या होती है. इसके कारण अनिद्रा, नार्कोलेप्सी, स्लीप डिसऑर्डर, ब्रीदिंग समस्याएँ और रेस्टलेस लेग सिंड्रोम जैसी स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न होती हैं. नींद में देरी और डिप्रेशन अक्सर एक-दूसरे को बढ़ाते हैं और आपस में जुड़े हुए होते हैं.
अधिक स्क्रीन टाइम उड़ा रही रात की नींद
फोन, टैबलेट, लैपटॉप और टीवी स्क्रीन से निकलने वाली नीली रौशनी मेलाटोनिन उत्पादन को प्रभावित करती है, इससे नींद की समस्या हो सकती है. विशेषज्ञों की सलाह है कि सोने से 2 घंटे पहले इन डिवाइस का उपयोग बंद कर देना चाहिए. यदि रात में डिवाइस का उपयोग आवश्यक हो, तो ब्लू कट एंटी ग्लेयर कोटिंग लेंस वाले चश्मे का इस्तेमाल करना फायदेमंद हो सकता है.
स्लीप डिसऑर्डर से होती है नींद की समस्या
डिलेड स्लीप फेज सिंड्रोम (DSPS) के अलावा भी कई अन्य स्लीप डिसऑर्डर नींद में समस्याएं पैदा कर सकते हैं. स्लीप एप्निया और रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम जैसी स्थितियां रात की नींद को बाधित कर सकती हैं, जिससे दिन में नींद आने लगती है.