नई दिल्ली: मां, सिर्फ एक शब्द ही नहीं एक भावना भी है। यह शब्द कहने और लिखने में भले ही में छोटा है। लेकिन इसकी परिभाषा बहुत बड़ी है। कहा जाता है कि दुनिया का सबसे खुबसूरत एहसास मां बनना है। लेकिन यह एहसास जितना खुबसूरत है, साथ ही मुश्किलों से भी भरा है। मां बनने का वरदान महिलाओं को प्रकृति से मिला है। मगर इसकी प्राप्ति के लिए उन्हें कठोर तपस्या से गुजरना पड़ता है।
गर्भावस्था में महिलाओं के शरीर पर तो असर पड़ता है ही। लेकिन इसके साथ ही मस्तिष्क पर भी उतना ही गहरा असर पड़ता है। महिला नौ महीने की गर्भावस्था में कई तरह की शारीरिक और मानसिक कष्ट सहन करती है। इसके साथ ही बार-बार उसके धैर्य की प्रतीक्षा भी होती है। कई त्याग और तमाम परेशानियों के बाद एक महिला मां बनती है और उसकी गोद में एक जिंदगी मुस्कुराती है।
क्या है प्रेगनेंसी ब्रेन
जब महिला के दिमाग पर प्रेगनेंसी और पेरेंटहुड का असर पड़ता है तो उसे मम्मी ब्रेन या प्रेगनेंसी ब्रेन कहते हैं। इसके साथ ही इसे मॉमनेशिया भी कहा जाता है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि जिस महिला को गर्भावस्था में प्रेगनेंसी ब्रेन होता है, उसकी याददाश्त थोड़ी कमजोर हो जाती है। इस परिस्थिति में महिला जल्दी-जल्दी भूलने लग जाती है। इस समस्या से बहुत सी महिलाएं गर्भावस्था के समय और इसके बाद भी जूझ रही होती हैं। मगर उन्हें इस बारे में न ही ठीक से कोई जानकारी होती है और न ही वो इन बातों को किसी से कह पाती हैं।
80 प्रतिशत से ज्यादा महिलाएं गुजरती है ‘प्रेगनेंसी ब्रेन’ से
80 प्रतिशत से ज्यादा महिलाएं ‘प्रेगनेंसी ब्रेन’ से गुजरती हैं, ये नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन की एक स्टडी में सामने आया है। बताया जा रहा है कि लगभग हर महिला को गर्भावस्था के दौरान मस्तिष्क में बदलाव महसूस होता है।
बताया जा रहा है कि न्यूरो साइंस में प्रकाशित एक स्टडी के अनुसार मां बनने के बाद और गर्भावस्था के दौरान मस्तिष्क में कई जगह ग्रे-मैटर की मात्रा कम हो जाती है। यह मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी में एक प्रकार का टिशु है। इसके साथ ही यह हर दिन हमारे समान्य रूप से कार्य करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। प्रसव के ठीक बाद प्रेगनेंसी ब्रेन ठीक हो जाता है। क्योंकि यह एक अस्थाई अवस्था है। ऐसा जरुरी नहीं है कि इस समस्या से हर महिला गुजरे.
प्रेगनेंसी ब्रेन की समस्या कब शुरु होती है
इसकी शुरुआत गर्भवस्था के पहले 3 से 4 महीने से शुरू हो सकती है। गर्भावस्था के दौरान कई हौर्मोंस रिलीज होते हैं। इससे इसकी मात्रा बढ़ जाती है और मस्तिष्क में बदलाव होने लगते हैं। इसके साथ ही शरीर में इस दौरान कई बदलाव आते हैं। जैसे नींद न लगना, चीजें भूलना, चिड़चिड़ापन इत्यादि.
कैसे किया जाए बचाव
– अपने होने वाले बच्चे के बारे में ज्यादा न सोचें.
– मां बनने पर भूमिका बदल जाती है और जिम्मेदारियां बढ़ जाती हैं. इसलिए ऐसे में जरुरी है कि पूरी नींद लें.
– टाइम मैनेजमेंट सीखें और अपनी दिनचर्या के काम को योजनाबद्ध तरीके से बांट लें. इससे आपको पर्याप्त आराम मिल सकेगा और आप पूरी नींद ले सकेंगे.