जानिए बाबा बैद्यनाथ से जुड़ी कुछ खास बातें। आखिर किसने की थी बाबा बैद्यनाथ की स्थापना?
देवघर : झारखंड के देवघर नामक शहर में स्थित है द्वादश ज्योतिर्लिंग, बाबा बैद्यनाथ का मंदिर। भगवान शिव का दूसरा नाम बैधनाथ भी है, इस कारण श्रद्धालु इसे बैधनाथ धाम भी कहते हैं। ये एक सिद्धिपीठ है। इसलिए इस लिंग को “कामना लिंग” भी कहा जाता है।
जानें बाबा बैद्यनाथ मंदिर से माता सती का रिश्ता:
कहा जाता है कि बैधनाथ धाम में माता सती का हृदय गिरा था। इसलिए इसे शक्तिपीठ भी कहा जाता है। चूंकि वहां सती का हृदय गिरा था, इसलिए उस स्थान को हृदयपीठ के नाम से भी जाना जाता है। उस स्थान में जयदुर्गा मंदिर की स्थापना की गई है और महादेव को बैधनाथ के रूप में पूजा जाता है।
बाबा बैद्यनाथ मंदिर परिसर के भीतर, जयदुर्गा शक्तिपीठ बैद्यनाथ के मुख्य मंदिर के ठीक सामने ही है। दोनो मंदिर अपने शीर्षों में लाल रंग के रेशमी धागों से जुड़े हुए हैं। पौराणिक मान्यता है कि जो भी दंपत्ति इन दोनों शीर्षों को रेशम के धागों से बांधता है, महादेव और देवी पार्वती का उस दंपत्ति पर विशेष कृपा बनी रहती है।
भगवान विष्णु के हाथों हुई थी बाबा बैद्यनाथ की स्थापना :
सावन का महीना हिन्दुओं के लिए काफी पावन महीना होता है। इस महीने बड़े धूम धाम से भगवान शिव की आराधना की जाती है। भारत में भगवान शिव के कुल 12 ज्योतिर्लिंग हैं। जिसमें से द्वादश ज्योतिर्लिंग बाबा बैद्यनाथ का है। सावन के महीने में श्रद्धालु दूर दूर से इसके दर्शन करने और बाबा पर जल चढ़ाने आते हैं। इससे जुड़ी एक मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण स्वयं विश्वकर्मा जी ने किया था। चालिए जानते हैं इससे जुड़ी एक और बड़ी मान्यता।
क्या है हरिहर मिलन की परंपरा? क्यों है ये इतना खास?
कहा जाता है कि बाबा बैद्यनाथ की स्थापना भगवान विष्णु, जिन्हें हरी के रूप में भी पूजा जाता है उन्होंने की थी। इसलिए श्रद्धालु एक दूसरे को नमस्ते के बजाए हरिहर का संबोधन करते हुए सुनाई देते हैं।
फाल्गुन महीने के पूर्णिमा के दिन हुई थी स्थापना
बाबा बैद्यनाथ की स्थापना फाल्गुन महीने के पूर्णिमा के दिन हुआ था। इसलिए साल में एक दिन हरी तथा हर की मिलन करने की परंपरा चली आ रही है। इस क्षण को देखने के लिए काफी भीड़ उमड़ती है। कहा जाता है कि इस क्षण को देखने मात्र से मनुष्य को पुण्य लाभ होता है और जीवन में प्रेम व शांति का वातावरण बन जाता है।
कार्तिक मास के शुक्ल चतुर्दशी की रात में भगवान विष्णु और भगवान शिव का मिलन हरिहर मिलाप के रूप में होता है। कहा जाता है कि मध्य रात्रि में महादेव, भगवान विष्णु से मिलने जाते हैं। इसलिए भगवान शिव का पूजन, भगवान विष्णु जी की प्रिय तुलसीदल से किया जाता है, बाद में भगवान विष्णु जब शिव जी के पास आते हैं तो वे शिव जी को फलों का भोग लगाते हैं और बेल पत्र अर्पित करते हैं। इस तरह से एक दूसरे के पसंदीदा वस्तुओं का भोग एक दूसरे को लगाते हैं।
कहा जाता है कि बैकुंठ चतुर्दशि पर भगवान शिव अपनी सत्ता चार महीने के लिए भगवान विष्णु को सौंप कर कैलाश पर्वत पर लौट जाते हैं। जब कार्य भार भगवान विष्णु के पास आता है है तभी श्रृष्टि के सारे काम शुरू हो जाते हैं। और इस दिन को बैकुंठ चतुर्दशी या हरिहर मिलन के रूप में भी देखा जाता है।
क्यों कहा जाता है इसे मनोकामना लिंग?
पौराणिक मान्यता के अनुसार जब लंकापति रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए अपने शीश काटकर अर्पित करने शुरू किए। तो भोलेनाथ रावण की तपस्या से प्रसन्न हो गए और रावण के शीश को जोड़ दिया था। तब से वे बाबा बैद्यनाथ कहलाए। कहा जाता है की कोई अगर सच्चे मन से उनकी सेवा करे तो वे उसकी भी मनोवांछा पूरी कर देते हैं। इसलिए बाबा बैद्यनाथ को मनोकामना लिंग के नाम से भी जाना जाता है।