लखनऊ: वतन पर शहीद होने वालों के लिए श्रद्धांजलि तो अर्पित करता है, लेकिन जब इन शहीदों के परिवार को सम्मान और राहत की आवश्यकता होती है, तब कभी-कभी सिस्टम की लापरवाही उनके संघर्ष को और भी लंबा कर देती है. ऐसा ही एक दहलाने वाला किस्सा है 77 वर्षीय सावित्री सक्सेना का, जिनकी पूरी जिंदगी अपने शहीद बेटे की शहादत के बाद सिस्टम के खिलाफ संघर्ष करते हुए गुजर गई.
यह कहानी है शहीद विवेक सक्सेना की, जिन्होंने 2003 में मणिपुर में आतंकियों से लड़ते हुए अपनी जान गंवा दी. विवेक को मरणोपरांत शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया था, और पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने उनका मेडल उनके पिता के हाथों में सौंपा था. लेकिन इसके बाद जो हुआ, वह एक दुखद और हैरान कर देने वाला है.
बेटे की शहादत के बाद संघर्ष की शुरुआत
शहीद विवेक के माता-पिता के लिए यह एक गर्व की बात थी कि उनका बेटा देश की सेवा में शहीद हुआ, लेकिन उसके बाद शुरू हुआ उनके परिवार के लिए एक लंबा और दखद संघर्ष. शहीद विवेक सक्सेना के परिवार को 10 लाख रुपये की सम्मान राशि मिलनी थी, लेकिन इस राशि के लिए उन्हें सालों तक सरकारी दफ्तरों और सिस्टम से लड़ना पड़ा.
पति के निधन के बाद, इस जिम्मेदारी को विवेक की मां सावित्री सक्सेना ने संभाला. एक शहीद की मां होने के नाते उन्होंने यह ठान लिया था कि जब तक उनके बेटे का सम्मान नहीं मिलता, तब तक वह लड़ाई जारी रखेंगी. सावित्री जी ने लखनऊ से लेकर दिल्ली तक सरकारी अधिकारियों और सांसदों के चक्कर लगाए, लेकिन परिणाम वही रहा, लम्बा इंतजार और कोई नतीजा नहीं.
सावित्री सक्सेना की जिद और संघर्ष
सावित्री जी के संघर्ष का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने स्थानीय विधायक, सांसद से लेकर मुख्यमंत्री तक को सिफारिश पत्र दिए, लेकिन कोई भी उनकी मदद करने के लिए आगे नहीं आया. वह कई बार धरने पर भी बैठीं, लेकिन किसी अधिकारी के कानों पर जूं नहीं रेंगी.
सावित्री जी का स्पष्ट रूप से कहना था, “मैं मरते दम तक अपने बेटे का सम्मान पाने के लिए लड़ूंगी. हम देश सेवा में समर्पित हैं और हमारे परिवार को इंसाफ मिलना चाहिए.”
उनका जज्बा ऐसा था कि उन्होंने कभी हार नहीं मानी, चाहे फिर इसके लिए उन्हें धरने पर बैठना पड़ा हो. सावित्री जी की यह संघर्ष यात्रा इस बात का प्रतीक बन गई कि जब कोई ठान ले, तो सिस्टम को भी झुकना पड़ता है.
20 साल बाद मिली राहत
लंबी लड़ाई के बाद अब जाकर सरकार ने सारी कार्रवाई पूरी कीं और शहीद विवेक सक्सेना की माता के खाते में 10 लाख रुपये की सम्मान राशि ट्रांसफर कर दी. यह राशि भले ही देर से आई हो, लेकिन यह निश्चित रूप से उनके संघर्ष की जीत थी.
हमारे शहीदों के परिवारों का सम्मान जरूरी है
यह घटना यह बताती है कि हमारे शहीद सैनिकों के परिवारों को सम्मान और राहत देना सिर्फ सरकार की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि हम सभी की जिम्मेदारी बनती है. उनके बलिदान को याद रखते हुए हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके परिवार को कभी भी तंगहाली और असमर्थता का सामना न करना पड़े.
सावित्री सक्सेना की यह कहानी हमें यह सिखाती है कि शहीदों के परिवारों का सम्मान सिर्फ ब्दों से नहीं, बल्कि उनके हक को समय पर और सही तरीके से देने से किया जाता है. उनके बेटे ने देश के लिए अपनी जान दी, और अब उसकी मां ने अपने संघर्ष से यह साबित किया कि एक महिला और एक मां की इच्छा और संकल्प को अगर सही दिशा मिले, तो वह सिस्टम को भी झुका सकती है.