नई दिल्ली : Mpox यानी मंकीपॉक्स को दो साल में दूसरी बार WHO यानी विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ग्लोबल पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी घोषित किया है। बताया जा रहा है कि इस वायरस का नया स्ट्रेन Clad-1 पिछले स्ट्रेन के मुकाबले में ज्यादा संक्रामक है। इसके साथ ही इस बार स्ट्रेन में मृत्यु दर भी ज्यादा है।
आपको बता दें कि मंकीपॉक्स के पब्लिक इमरजेंसी घोषित होने के 15 दिन के अंदर इस संक्रमण की जांच के लिए भारत ने RT-PCR किट डेवलप कर लिया है। बताया जा रहा है कि इस किट का नाम IMDX Monkeypox Detection RT-PCR Assay रखा गया है। इस किट को सीमेंस हेल्थीनीयर्स ने तैयार किया है।
कंपनी के अनुसार इस टेस्टिंग किट से सिर्फ 40 मिनट में रिजल्ट मिल जाएंगे। इसके साथ ही इस किट को पुणे के ICMR यानी नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी ने क्लिनिकल मान्यता दे दी है। वहीं इस किट को बनाने की मंजूरी CDSCO यानी सेंट्रल प्रोटेक्शन ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन दी है.
पारंपरिक तरीकों के मुकाबले तेज रिजल्ट देगी यह किट : हरिहरन सुब्रमण्यन
आज के समय में सटीक और सही डायग्नॉस्टिक्स की आवश्यकता जितनी महत्वपूर्ण है, उतनी पहले कभी नहीं रही। सिर्फ 40 मिनट में यह किट रिजल्ट देगी। उक्त बातें सीमेंस हेल्थकेयर प्राइवेट लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर हरिहरन सुब्रमण्यन ने कही। उन्होंने ये भी कहा कि यह किट 1 से 2 घंटे में रिजल्ट देने वाले पारंपरिक तरीकों के मुकाबले कहीं तेज है।
एक्सपर्ट्स का कहना है कि मंकीपॉक्स का पता लगाने में लगने वाला समय इस किट की मदद से कम होगा। इसके साथ ही इलाज में भी तेजी आएगी। भारतीय वैधानिक दिशा-निर्देशों के तहत ही IMDX मंकीपॉक्स RTPCR किट बनाई गई है। इसके साथ ही यह ग्लोबल स्टैंडर्ड में भी खरी उतरती है।
वडोदरा की यूनिट में एक साल में 10 लाख किट बनाने की क्षमता
सीमेंस हेल्थकेयर प्राइवेट लिमिटेड ने बताया है कि यह RT-PCR किट वडोदरा स्थित कंपनी की मॉलिक्यूलर डायग्नॉस्टिक्स मैन्युफैक्चरिंग यूनिट में बनाई जाएगी। इस यूनिट की एक साल में 10 लाख किट बनाने की क्षमता है। फैक्ट्री इन RT-PCR किट को उपलब्ध कराने के लिए तैयार है.
यह RT-PCR किट कैसे करेगी काम
कंपनी का कहना है कि यह RT-PCR किट मॉलिक्यूलर टेस्ट है। टेस्ट के दौरान यह वायरस के जीनोम में दो अलग क्षेत्रों को टारगेट करता है। इसी से दोनों वैरिएंट यानी क्लेड-I और क्लेड-II का पता लगाया जा सकता है। इसके साथ ही अलग-अलग वायरल स्ट्रेन्स का पूरी तरह से पता लगाने और यह किट व्यापक परिणाम देने की भी क्षमता रखती है।
यह किट बहुत खास है। क्योंकि किसी भी प्लेटफॉर्म पर काम कर सकती है। वहीं स्टैंडर्ड PCR सेटअप के साथ मौजूदा लैब फ्लोवर्क में भी यह आसानी फिट हो जाती है। इसलिए किसी नए इंस्ट्रूमेंट की जरूरत नहीं होती.
1958 में पहली बार बंदरों में मिला था मंकीपॉक्स
बता दें कि मंकीपॉक्स पहली बार 1958 में खोजा गया था। उस समय रिसर्च के लिए डेनमार्क में रखे गए दो बंदरो में चेचक जैसी बीमारी के लक्षण देखे गए थे। वहीं 1970 में इंसानों में इसका पहला मामला सामने आया था। तब कॉन्गों में 9 साल के बच्चे में यह वायरस पाया गया था। ये बीमारी आम तौर पर चूहे, गिलहरी और नर बंदरों से फैलती है।
कैसे फैलता है मंकीपॉक्स
मंकीपॉक्स को अमूमन जेनोसिस कहा जाता है, यह बीमारी जानवर से इंसान में आती है। यह बंदर, बड़े चूहे और जंगली गिलहरी से फैलता है। इसके साथ ही ये और भी तरीके से फैलता है। कम्युनिकेबल डिजीज होने की वजह से यह तेजी से फैलता है। यह कांटेक्ट के जरिए भी फैलता है। अगर कोई पहले से ही मंकीपॉक्स से पीड़ित है और आप उसके संपर्क में रहें तो उससे भी यह बीमारी फैलती है। यह इंसान से इंसान में भी फैल सकती है। इसके साथ ही मंकीपॉक्स खांसी से भी फैल सकती है, मगर इसकी संभावना कम ही रहती है। बताया जा रहा है कि यह बीमारी सेक्स के जरिए भी फैल सकती है.