नई दिल्ली: आज के यूथ दिन भर स्मार्टफोन और सोशल मीडिया का लगातार इस्तेमाल कर रहे हैं। डॉ वेंडी सुजुकी एक जानी मानी न्यूरो-साइंटिस्ट हैं। डॉ वेंडी सुजुकी का कहना है कि ऐसा करने से हम अपने ब्रेन ग्रोथ को खत्म करने की राह पर चल रहे हैं। उनका ये कहना गलत नहीं है कि इन स्मार्टफोन्स और सोशल मीडिया से परे भी एक दुनिया है। स्मार्टफोन्स हमारे जीवन का एक अहम हिस्सा बन चुके हैं। पर इसका हद से ज्यादा इस्तेमाल और ओवरयूज़ हमारी सेहत के लिए बहुत हानिकारक है। इसका सीधा असर हमरे मेन्टल और इमोशनल हेल्थ पर पड़ रहा है। “The Diary of a CEO” पॉडकास्ट में स्टीवन बार्टलेट के साथ इंटरव्यू में डॉ सुजुकी ने बताया कि कैसे मोबाइल और स्मार्टफोन्स का हमारे दिमाग पर असर पड़ रहा है और स्थिरता खत्म होने की सम्भावना भी है।
लंबे समय तक स्मार्टफोन के इस्तेमाल से खराब हो सकता है दिमाग
लम्बे समय तक स्मार्टफोन्स का इस्तेमाल करने से हमारा दिमाग खराब हो सकता है।
ज्यादा देर तक कंटेंट, रील्स और वीडियोज देखने की लत के कारण उत्तेजना बढ़ जाती है। इसके कारण हमरे शरीर के डोपामाइन लेवल्स ऊपर-नीचे होते हैं और हमें स्ट्रेस होती है। इस इमोशनल असंतुलन के कारण हमारे ब्रेन के तटस्थ रास्ते (neutral pathways ) में दिक्कतें आ सकती हैं। उन्होंने बताया कि उत्तेजनाओं की यह निरंतर बमबारी दिमाग की वृद्धि और लचीलेपन की क्षमता को सीमित कर देती है। इससे वास्तविक जीवन की बातचीत में खुशी और संतुष्टि की हमारी क्षमता कम हो जाती है।
सोशल मीडिया पर जुआ खेलने से बिगड़ते हैं मानसिक हालत
इसमें सबसे ज्यादा केसेज जुआ के हैं। सोशल मीडिया ऍप्स पर होने वाले जुआ से डोपामाइन लेवल्स तेज़ी से ऊपर- नीचे होता है। इससे हमारे इंसानी दिमाग में बहुत कम समय में बहुत ज्यादा इमोशनल चेंजेज देखने को मिलते हैं। लगातार फीड चेक करना , लाइक्स पर निगरानी रखना , गिफ्ट्स और अवार्ड्स लगातार चेक करते रहना। इन सब का असर हमारी मेन्टल हेल्थ पर दिखता है। इन सब हरकतों से हमें मोबाइल फ़ोन्स और स्मार्टफोन्स की लत लग जाती है। डॉ सुजुकी का कहना है कि इसका असर ज्यादातर जवान लोगों पर देखा गया है। उन्होंने कहा कि इस एडिक्शन का शिकार हो रहे हैं। मुख्य रूप से छोटे बच्चे और टीनएजर्स। ये बच्चे दिन में लगभग 7 घंटे तक सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं।
मानसिक तनाव का कारण है ऑनलाइन कंपटीशन
सर्वे ये बताती है कि लडकियां अपने लुक्स और ऑनलाइन प्रीसेंस को लेकर बहुत गंभीर रहती हैं। ये ऑनलाइन कम्पटीशन मानसिक तनाव का एक बड़ा कारण है। सोशल मीडिया के अधिक इस्तेमाल के कारण आज के दिनों में बच्चों का निकलना और लोगों से मिलना खत्म ही हो गया है। लोगों से मिलने से इंसान इमोशंस को बेहतर रूप से समझता है। इन केसेज में व्यक्ति को इंसानी इमोशंस समझने और रिश्ते बनाने में दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। हम जब लोगों से इंटरएक्शन को टालकर सोशल मीडिया को चुनते हैं। हमें ये ध्यान में रखना चाहिए कि हम अपने इमोशनल और मेंटल हेल्थ के साथ समझौता कर रहे हैं।
लिमिट में करें स्मार्ट फोंस का प्रयोग
डॉ सुजुकी का कहना है कि स्मार्टफोन्स आज के ज़माने में इस्तेमाल करना अनिवार्य हो गया है। पर ये समझना बहुत जरुरी है कि इसका इस्तेमाल एक लिमिट में किया जाए। अपने स्मार्टफोन्स और सोशल मिडिया से एक ब्रेक लें और अपने आस पास के लोगों से बात करें, अपने सोशल स्किल्स को बढ़ाएं। ये आगे जाकर आपकी बहुत मदद करेगा। बार बार खुद को नोटिफिकेशंस चेक करने से रोकें। इससे आपको लत से पीछा छुड़वाने में मदद मिलेगी। सोशल मीडिया से एक ब्रेक लें। इससे आपको बाहर की दुनिया का एक बेहतर अनुभव मिलेगा। शुरू में थोड़ा मुश्किल होगा। ये ब्रेक आपको खुद के और अज्ञात टैलेंट्स पता करने में भी आपकी मदद करेगा। डॉ सुजुकी का कहना है कि फिजिकल वर्कऑउट्स मेन्टल स्ट्रेस को कम करने में आपकी मदद कर सकता है।
10 मिनट की वाक से सुधर सकता है आपका मूड
10 मिनट की वाक भी प्राकृतिक रूप से आपके मूड में सुधार ला सकता है। मेडिटेशन करें, ध्यान लगाएं और अपनी ब्रीथिंग काउंट पर फोकस करें। इससे आपका शरीर रिलैक्स्ड महसूस करेगा और आपका मन शांत रहेगा। असल जीवन के अनुभव को जीने के लिए स्मार्टफोन्स की आदत छोड़कर हमें अपने आंतरिक मन पर ध्यान देना होगा। अपनी एंग्जायटी या मेन्टल स्ट्रेस को भागने का लक्ष्य न रखें। बल्कि उसे सही दिशा में लगाकर अपने पर्सनल ग्रोथ पर ध्यान दें। इससे आप आत्म जागरूक बनेंगे। जहां हर चीज़ स्मार्टफोन से जुड़ती जा रही है। हर काम के लिए स्मार्टफोन की जरुरत पड़ रही है।
दिमाग के लिए एक घातक है स्मार्टफोन
वहीं डॉ सुजुकी की इस एडवाइस ने हमें इस बात के लिए सचेत किया है कि कैसे एक स्मार्टफोन आपके लिए घातक साबित हो सकता है। स्मार्टफोन्स से पीछा छुड़ाना नामुमकिन है पर इसके इस्तेमाल को हम अवश्य कम कर सकते हैं। अच्छी आदतों को अपनाएं, माइंडफुल चॉइस करें और आपको पता चलेगा की किस तरह सोशल मीडिया की उस काली दुनिया के बाहर भी एक असल जीवन और उसके अनुभव आपका इंतजार कर रहे हैं।