जानिए कि 3 साल की उम्र में ही कहाँ तैयार हो रहे हैं “ रोनाल्डो-मेसी
फुटबॉल दुनिया का सबसे मशहूर खेल है. यह खेल पूरे यूरोप, साउथ अमेरिका व एशिया के कुछ भागों में इतना मशहूर है कि यहां के लोग इसको धर्म की तरह मानते हैं. अगर हम आज के दौर में किसी महान फुटबॉलर के बारे में पूछे तो सबसे पहले हमारी जुबां नाम पर मेसी, एम बाप्पे और रोनाल्डो जैसे खिलाड़ी का नाम आता है. 1985 में पैदा होने वाले रोनाल्डो ने अपने यूथ कैरियर की शुरुआत 1992 में ही कर दी थी. यानी सिर्फ सात साल की कच्ची उम्र में ही उन्होंने फुटबॉल खेलना शुरू किया था. सिर्फ 18 साल की उम्र में ही रोनाल्डो इंग्लिश प्रीमियर लीग में खेलने वाली दुनिया की सबसे मशहूर क्लब मैनचेस्टर यूनाइटेड से जुड़ गये थे. लेकिन अपने देश भारत में फुटबॉल का कोई कल्चर नहीं होने के कारण यहां पर जल्दी अच्छा खिलाड़ी पैदा नहीं होते है. लेकिन क्रिकेट के मामले में भारत काफी आगे है. क्रिकेट में 16 साल की उम्र में ही सचिन जैसा खिलाड़ी भारत के लिए खेल गया. भारत में आइएसएल आने के बाद यहां पर फुटबॉल का स्वरूप पूरी तरह से बदल गया है. अब आइएसएल में खेलने वाली टीमें पेशेवर फुटबॉल के अलावा जूनियर फुटबॉल को भी विकास करने में जोर दे रही है. जिससे भारत में फुटबॉलरों की पाइप लाइन तैयार हो सके. इस क्रम में हर आइएसएल क्लब ने ग्रास रूट की शुरुआत की. जमशेदपुर में भी जेएफसी ने ग्रास रूट प्रोग्राम चल रहा है, जिसका मकसद 14 वर्ष तक के बच्चों को प्रतिस्पर्धी फुटबॉल खेलने के लिए तैयार करना है.
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फुटबॉल की ट्रेनिंग के लिए तीन साल की उम्र है माकूल
जेएफसी ग्रास रूट के हेड कोच कुंदन चंद्रा ने बताया कि फुटबॉल की शुरुआत करने के लिए तीन साल का उम्र माकूल है. लेकिन इन बच्चों को आप सीधा फुटबॉल नहीं सिखा सकते हैं. इनको जिस तरह से प्ले स्कूल में बच्चों को फन के जरिये पढ़ने का तरीका सिखाया जाता और बढ़ाया जाता है, ठीक उसी तरह से इन बच्चों को ग्रास रुट में भी ट्रेनिंग दी जाती है.
5 साल की उम्र में बच्चों का 90 फीसदी मस्तिष्क हो जाता है डेवलप
एक स्टडी का हवाला देते हुए कुंदन चंद्रा ने कहा कि पांच साल की उम्र में बच्चों का 90 प्रतिशत मस्तिष्क का विकास हो जाता है. इस उम्र में यह कोरा कागज की तरह होता. इसमें आप जो लिखेंगे वह उनके जिंदगी में हमेशा के लिए छप जाएगा. इसलिए इन बच्चों के फुटबॉल की ट्रेनिंग इस उम्र से शुरू कर दी जाती है. सबसे पहले बच्चे रंग को पहचानते और उनको उस रंग से प्यार होता है. इसलिए उनके लिए रंग-बिरंगा ट्रेनिंग सिस्टम डेवलप किया जाता है. उनके ट्रेनिंग एरिया में रंगे बिरंगे गेंद, कोण, छोटे-छोटे नेट लगा दिया जाता है. इन चीजों से उनकी पहली ट्रेनिंग की शुरुआत होती है. अब आप पूछेंगे की इन रंग बिरंगे चीजों की ट्रेनिंग में क्या काम है. तो कुंदन चंद्रा बताता हैं कि तीन साल से पांच साल तक के बच्चों का ध्यान बहुत कमजोर होता है. वह किसी एक चीज में अपना मन नहीं लगा सकते है. इसलिए इन रंग बिरंगे चीजों को उनके अगल-बगल फैला दिया जाता है, जिससे वह एक से बोर होकर दूसरे खेल में जुट जाएं. इतनी उम्र के बच्चों के लिए 30 से 45 मिनट की ट्रेनिंग काफी है.
पांच साल की उम्र से शुरू होती है एडवांस ट्रेनिंग
बच्चों को तीन साल लेकर पांच साल तक फुटबॉल के प्रति लगाव पैदा किया जाता है. पांच साल के बाद इन खिलाड़ियों को छोटे-छोटे ड्रिल के जरिये फुटबॉल की स्किल सिखायी जाती हैं. इस उम्र में बच्चों का हार्ट बिट ज्यादा होता है, इसलिए उनके एक्सरसाइज का भी ख्याल रखा जाता है. क्योंकि उनका वर्क रेट एडल्ट से ज्यादा होता है. आठ साल होते-होते इन बच्चों को पोजिशन के हिसाब से फुटबॉल खिलाना शुरू किया जाता है. उनको उनके पोजिशन की अहमियत भी समझायी जाती है. खिलाड़ियों को इसी उम्र में बताया जाता है कि गोलकीपिंग क्या है, डिफेंडर क्या होता है, फॉरवर्ड कैसे खेलता है और मिड फिल्डर कैसे बॉल को आगे सप्लाइ करता है.
12 साल तक तक चार हिस्सों में दी जाती है ट्रेनिंग
आठ साल के बाद बच्चों की ट्रेनिंग चार हिस्सों में बांट दी जाती है. पहली टेक्निकल, दूसरी टेक्टिकल, तीसरी फिजिकल व चौथी ग्राउंड ट्रेनिंग. इसके अलावा इन उम्र के बच्चों को 12 साल तक खिलाड़ियों को सोशल बिहेवियर भी समझाया जाता है. मैदान में कैसे ऑफिसियल्स से बात करनी है, खेल भावना के साथ कैसे मैदान में खेलना है, साथ ही उनको किस तरह हार और जीत के बाद अपने पर संयम रखना है. इन सबों के लिए उनको शिक्षित किया जाता है. जिससे वह 14 वर्ष होते-होते एक प्रोफेशनल खिलाड़ी का रूप ले सकें.
बच्चों के साथ-साथ पैरेंट्स की भी होती है ट्रेनिंग
जेएफसी के सीइओ मुकुल चौधरी ने बताया कि ग्रास रुट फुटबॉल से भविष्य का खिलाड़ी तैयार करना आसान काम नहीं है. इसके लिए खिलाड़ियों के साथ-साथ, कोच व उनके माता-पिता की भी ट्रेनिंग होती है. मुकुल चौधरी बताया कि विभिन्न ग्रास रुट स्कूल में समय-समय पर उनके माता-पिता को बुलाकर एक सेमिनार का आयोजन होता है. जिसमें उनको एक्सपर्ट सिखाते हैं कि कैसे अपने बच्चों की साफ-सफाई करनी है. उनके हाइजीन का ख्याल रखना है. उनके शरीर में किस तरह से पानी की मात्रा बनी रहे, इसके लिए वह उनको कौन सा फ्रूट दें, इससे जुड़ी ट्रेनिंग दी जाती है. उदाहरण के लिए 10 किलो के बच्चे के शरीर में 500 एमएल पानी होना जरूरी है. ऐसे में मम्मी व पापा को समझाया जाता है कि पानी पिलाएं. मौसम के अनुसार. वहीं माता-पिता को बच्चों को सही तरीके से ड्रेस पहनने की, प्रॉपर शू लेस बांधने की भी ट्रेनिंग दी जाती है. जिससे छोटे बच्चे का काम आसान हो सके और बच्चे भविष्य में अपनी मां-बाप को देखकर ये चीजों सीखकर खुद उसे व्यवहार में ला सकें.
कोचों की ट्रेनिंग है बेहद खास
जेएफसी ग्रास रूट के हेड कुंदन चंद्रा ने बताया कि बच्चों को ट्रेनिंग देने के लिए कोचों का ट्रेंड होना भी जरुरी है. इसके लिए जेएफसी ग्रास रुट के तहत कोचिंग ट्रेनिंग कार्यक्रम की शुरुआत की गयी है. शहर के पांच स्कूलों में कुल 17 कोचों द्वारा फिलहाल 592 बच्चे को ट्रेनिंग दी जा रही है. इन सभी बच्चों को ट्रेंड कोच ट्रेनिंग दे रहे हैं. कुंदन चंद्रा बताते हैं कि बच्चों से ज्यादा महत्वपूर्ण कोचों की ट्रेनिंग है. उनको किसी ग्रास रुट में नियुक्त करने से पहले बच्चों को फुटबॉल कैसे समझाया जाए. इन सब चीजों की बारीक ट्रेनिंग दी जाती है. स्टेप बाई स्टेप कोचों को बताया जाता है कि छोटे बच्चों के साथ फन के साथ-साथ फुटबॉल कैसे सिखायी जा सकती है. ग्रामीण क्षेत्र में भी टीएसआरडीएस के माध्यम से ग्रास रुट इवेंट की शुरुआत की गयी है. इसमें 37 कोच अपनी सेवा दे रहे हैं. जेएफसी की ओर से शहर के लोयोला स्कूल, हिलटॉप, जेपीएस, माउंट लिटरा व हिलटॉप में सॉकर स्कूल चलाया जा रहा है.[/vc_column_text][vc_column_text]
तीन से उम्र से तैयार हो रहे भविष्य के रोनाल्डो और मेसी
फुटबॉल दुनिया का सबसे मशहूर खेल है. यह खेल पूरे यूरोप, साउथ अमेरिका व एशिया के कुछ भागों में इतना मशहूर है कि यहां के लोग इसको धर्म की तरह मानते हैं. अगर हम आज के दौर में किसी महान फुटबॉलर के बारे में पूछे तो सबसे पहले हमारी जुबां नाम पर मेसी, एम बाप्पे और रोनाल्डो जैसे खिलाड़ी का नाम आता है. 1985 में पैदा होने वाले रोनाल्डो ने अपने यूथ कैरियर की शुरुआत 1992 में ही कर दी थी. यानी सिर्फ सात साल की कच्ची उम्र में ही उन्होंने फुटबॉल खेलना शुरू किया था. सिर्फ 18 साल की उम्र में ही रोनाल्डो इंग्लिश प्रीमियर लीग में खेलने वाली दुनिया की सबसे मशहूर क्लब मैनचेस्टर यूनाइटेड से जुड़ गये थे. लेकिन अपने देश भारत में फुटबॉल का कोई कल्चर नहीं होने के कारण यहां पर जल्दी अच्छा खिलाड़ी पैदा नहीं होते है. लेकिन क्रिकेट के मामले में भारत काफी आगे है. क्रिकेट में 16 साल की उम्र में ही सचिन जैसा खिलाड़ी भारत के लिए खेल गया. भारत में आइएसएल आने के बाद यहां पर फुटबॉल का स्वरूप पूरी तरह से बदल गया है. अब आइएसएल में खेलने वाली टीमें पेशेवर फुटबॉल के अलावा जूनियर फुटबॉल को भी विकास करने में जोर दे रही है. जिससे भारत में फुटबॉलरों की पाइप लाइन तैयार हो सके. इस क्रम में हर आइएसएल क्लब ने ग्रास रूट की शुरुआत की. जमशेदपुर में भी जेएफसी ने ग्रास रूट प्रोग्राम चल रहा है, जिसका मकसद 14 वर्ष तक के बच्चों को प्रतिस्पर्धी फुटबॉल खेलने के लिए तैयार करना है.
फुटबॉल की ट्रेनिंग के लिए तीन साल की उम्र है माकूल
जेएफसी ग्रास रूट के हेड कोच कुंदन चंद्रा ने बताया कि फुटबॉल की शुरुआत करने के लिए तीन साल का उम्र माकूल है. लेकिन इन बच्चों को आप सीधा फुटबॉल नहीं सिखा सकते हैं. इनको जिस तरह से प्ले स्कूल में बच्चों को फन के जरिये पढ़ने का तरीका सिखाया जाता और बढ़ाया जाता है, ठीक उसी तरह से इन बच्चों को ग्रास रुट में भी ट्रेनिंग दी जाती है.
5 साल की उम्र में बच्चों का 90 फीसदी मस्तिष्क हो जाता है डेवलप
एक स्टडी का हवाला देते हुए कुंदन चंद्रा ने कहा कि पांच साल की उम्र में बच्चों का 90 प्रतिशत मस्तिष्क का विकास हो जाता है. इस उम्र में यह कोरा कागज की तरह होता. इसमें आप जो लिखेंगे वह उनके जिंदगी में हमेशा के लिए छप जाएगा. इसलिए इन बच्चों के फुटबॉल की ट्रेनिंग इस उम्र से शुरू कर दी जाती है. सबसे पहले बच्चे रंग को पहचानते और उनको उस रंग से प्यार होता है. इसलिए उनके लिए रंग-बिरंगा ट्रेनिंग सिस्टम डेवलप किया जाता है. उनके ट्रेनिंग एरिया में रंगे बिरंगे गेंद, कोण, छोटे-छोटे नेट लगा दिया जाता है. इन चीजों से उनकी पहली ट्रेनिंग की शुरुआत होती है. अब आप पूछेंगे की इन रंग बिरंगे चीजों की ट्रेनिंग में क्या काम है. तो कुंदन चंद्रा बताता हैं कि तीन साल से पांच साल तक के बच्चों का ध्यान बहुत कमजोर होता है. वह किसी एक चीज में अपना मन नहीं लगा सकते है. इसलिए इन रंग बिरंगे चीजों को उनके अगल-बगल फैला दिया जाता है, जिससे वह एक से बोर होकर दूसरे खेल में जुट जाएं. इतनी उम्र के बच्चों के लिए 30 से 45 मिनट की ट्रेनिंग काफी है.
पांच साल की उम्र से शुरू होती है एडवांस ट्रेनिंग
बच्चों को तीन साल लेकर पांच साल तक फुटबॉल के प्रति लगाव पैदा किया जाता है. पांच साल के बाद इन खिलाड़ियों को छोटे-छोटे ड्रिल के जरिये फुटबॉल की स्किल सिखायी जाती हैं. इस उम्र में बच्चों का हार्ट बिट ज्यादा होता है, इसलिए उनके एक्सरसाइज का भी ख्याल रखा जाता है. क्योंकि उनका वर्क रेट एडल्ट से ज्यादा होता है. आठ साल होते-होते इन बच्चों को पोजिशन के हिसाब से फुटबॉल खिलाना शुरू किया जाता है. उनको उनके पोजिशन की अहमियत भी समझायी जाती है. खिलाड़ियों को इसी उम्र में बताया जाता है कि गोलकीपिंग क्या है, डिफेंडर क्या होता है, फॉरवर्ड कैसे खेलता है और मिड फिल्डर कैसे बॉल को आगे सप्लाइ करता है.
12 साल तक तक चार हिस्सों में दी जाती है ट्रेनिंग
आठ साल के बाद बच्चों की ट्रेनिंग चार हिस्सों में बांट दी जाती है. पहली टेक्निकल, दूसरी टेक्टिकल, तीसरी फिजिकल व चौथी ग्राउंड ट्रेनिंग. इसके अलावा इन उम्र के बच्चों को 12 साल तक खिलाड़ियों को सोशल बिहेवियर भी समझाया जाता है. मैदान में कैसे ऑफिसियल्स से बात करनी है, खेल भावना के साथ कैसे मैदान में खेलना है, साथ ही उनको किस तरह हार और जीत के बाद अपने पर संयम रखना है. इन सबों के लिए उनको शिक्षित किया जाता है. जिससे वह 14 वर्ष होते-होते एक प्रोफेशनल खिलाड़ी का रूप ले सकें.
बच्चों के साथ-साथ पैरेंट्स की भी होती है ट्रेनिंग
जेएफसी के सीइओ मुकुल चौधरी ने बताया कि ग्रास रुट फुटबॉल से भविष्य का खिलाड़ी तैयार करना आसान काम नहीं है. इसके लिए खिलाड़ियों के साथ-साथ, कोच व उनके माता-पिता की भी ट्रेनिंग होती है. मुकुल चौधरी बताया कि विभिन्न ग्रास रुट स्कूल में समय-समय पर उनके माता-पिता को बुलाकर एक सेमिनार का आयोजन होता है. जिसमें उनको एक्सपर्ट सिखाते हैं कि कैसे अपने बच्चों की साफ-सफाई करनी है. उनके हाइजीन का ख्याल रखना है. उनके शरीर में किस तरह से पानी की मात्रा बनी रहे, इसके लिए वह उनको कौन सा फ्रूट दें, इससे जुड़ी ट्रेनिंग दी जाती है. उदाहरण के लिए 10 किलो के बच्चे के शरीर में 500 एमएल पानी होना जरूरी है. ऐसे में मम्मी व पापा को समझाया जाता है कि पानी पिलाएं. मौसम के अनुसार. वहीं माता-पिता को बच्चों को सही तरीके से ड्रेस पहनने की, प्रॉपर शू लेस बांधने की भी ट्रेनिंग दी जाती है. जिससे छोटे बच्चे का काम आसान हो सके और बच्चे भविष्य में अपनी मां-बाप को देखकर ये चीजों सीखकर खुद उसे व्यवहार में ला सकें.
कोचों की ट्रेनिंग है बेहद खास
जेएफसी ग्रास रूट के हेड कुंदन चंद्रा ने बताया कि बच्चों को ट्रेनिंग देने के लिए कोचों का ट्रेंड होना भी जरुरी है. इसके लिए जेएफसी ग्रास रुट के तहत कोचिंग ट्रेनिंग कार्यक्रम की शुरुआत की गयी है. शहर के पांच स्कूलों में कुल 17 कोचों द्वारा फिलहाल 592 बच्चे को ट्रेनिंग दी जा रही है. इन सभी बच्चों को ट्रेंड कोच ट्रेनिंग दे रहे हैं. कुंदन चंद्रा बताते हैं कि बच्चों से ज्यादा महत्वपूर्ण कोचों की ट्रेनिंग है. उनको किसी ग्रास रुट में नियुक्त करने से पहले बच्चों को फुटबॉल कैसे समझाया जाए. इन सब चीजों की बारीक ट्रेनिंग दी जाती है. स्टेप बाई स्टेप कोचों को बताया जाता है कि छोटे बच्चों के साथ फन के साथ-साथ फुटबॉल कैसे सिखायी जा सकती है. ग्रामीण क्षेत्र में भी टीएसआरडीएस के माध्यम से ग्रास रुट इवेंट की शुरुआत की गयी है. इसमें 37 कोच अपनी सेवा दे रहे हैं. जेएफसी की ओर से शहर के लोयोला स्कूल, हिलटॉप, जेपीएस, माउंट लिटरा व हिलटॉप में सॉकर स्कूल चलाया जा रहा है.[/vc_column_text][/vc_column][vc_column][/vc_column][/vc_row]