सनातन धर्म में तुलसी विवाह का बड़ा महत्व होता है। देव उठनी एकादशी के शाम में गोधूलि बेला पर तुलसी विवाह का पालन किया जाता है। शास्त्र के अनुसार गोधूलि बेला पर मां लक्ष्मी का आगमन होता है, इसलिए इस समय का महत्व और भी अधिक हो जाता है। देव उठनी एकादशी पर भगवान विष्णु 4 महीने के बाद याद निद्रा से जागृत होते हैं। इसलिए भगवान विष्णु को शंख बजाकर उठने के बाद ही तुलसी विवाह का आयोजन किया जाना चाहिए।
12 नवंबर 2024, दिन मंगलवार यानि आज है देव उठनी एकादशी। इसी दिन शाम के समय, गोधूलि बेला में भगवान विष्णु को निद्रा से जागने के बाद ही तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता है। इस दौरान तुलसी जी और शालीग्राम का विवाह कराने का विधान है। यदि आप भी घर पर तुलसी विवाह कराना चाहते हैं तो कुछ विशेष नियमों का पालन करना पड़ता है।
इस तरह भगवान विष्णु को उठाएं :
सुबह जल्दी उठकर, स्नान कर लें इसके बाद भगवान विष्णु को घंटा और शंख बजाकर निद्रा से जगाएं। इसके बाद भगवान विष्णु की पूजा करें। ऐसा करने से आपके दिन का शुभारंभ होगा और आपके आसपास का वातावरण भी पवित्र बना रहेगा। इसके साथ साथ विष्णु जी की आरती भी उतरनी चाहिए।
गोधूलि बेला में करते तुलसी जी और शालीग्राम का विवाह :
तुलसी जी और शालीग्राम के विवाह का सबे उत्तम समय गोधूलि बेला है। सूर्यास्त के बाद का समय गोधूलि बेला के नाम से जाना जाता है। ये समय शाम 05:00 बजे से शाम 07:00 बजे के बीच का समय माना जाता है। यह एक पवित्र समय माना जाता है जब शालिग्राम और तुलसी जी का विवाह कराया जाता है।
तुलसी विवाह के नियम :
1) गन्ने और केले के पत्तों से सजाए मंडप। आधुनिक काल में कईं रंगीन सजावटी चीज़ों से मंडप सजाया जा सकता है। तुलसी विवाह के लिए चौकी को और मंडप को गन्ने और केले के पत्तों से सजाना चाहिए।
2) तुलसी के विवाह के समय विवाह गीत और मंगल गीत गाना चाहिए।
3) आसान सहित तुलसी और शालीग्राम का विवाह करना चाहिए। इनका विवाह करते समय आसान सहित ही आपको इनके फेरे कराने चाहिए।
4) फेरों के बाद तुलसी जी और शालीग्राम जी की आरती उतारे और बाकी सब में प्रसाद वितरण कर दे।