जमशेदपुर : बच्चों की शुरूआती शिक्षा अगर सही नहीं हो तो ये उनके लिए आगे जाकर परेशानी का सबब बन सकती है. इसलिए शिक्षा की नींव मजबूत होना किसी भी बच्चे के लिए बेहद जरूरी है. इसके साथ ही शिक्षा और विकास का संतुलन भी बना रहना चाहिए. जिससे बच्चों को मानसिक तनाव न हो और उन्हें पढ़ाई कभी भी बोझ न लगे. बच्चों की शिक्षा और विकास को लेकर पढ़ेगा इंडिया की टीम ने जमशेदपुर के साकची स्थित दयानंद पब्लिक स्कूल की प्रिंसिपल स्वर्णा मिश्रा से बातचीत की और जाना कि बच्चों की शुरूआती शिक्षा की प्रभावी विधियां क्या है, जिससे बच्चों को पढ़ाई आसान लगती है.
3 साल की उम्र में बच्चा आ सकता है स्कूल
दयानंद पब्लिक स्कूल की प्रिंसिपल स्वर्णा मिश्रा का कहना है कि न्यू एजुकेशन पॉलिसी के अनुसार 3 साल का बच्चा स्कूल आ सकता है. इस पॉलिसी के तहत ‘एजुकेशन विद एक्टिविटी’ को प्राथमिकता दी गई है. वहीं 3 साल का बच्चा जब स्कूल में आता है तो उसे ज्यादा से ज्यादा एक्टिविटी में इन्वोल्व करने की कोशिश रहती है. इसमें बच्चों को हाथ-पैर के को-ऑर्डिनेशन दिखाना, बच्चे को उसी के नाम के लेटर से फन एक्टिविटी कराना आदि शामिल रहता है. इससे बच्चों को नई चीजें सीखने में मदद मिलती है और पढ़ने में रुचि बढ़ती है.
बच्चों की सामाजिक और भावनात्मक विकास पर कैसे दिया जाए जोर
बच्चों का सामाजिक और भावनात्मक विकास कैसे हो इसको लेकर प्रिंसिपल स्वर्णा मिश्रा ने कहा कि उनके विद्यालय में इसके लिए एक काउंसिलिंग सेशन रखा जाता है. उन्होंने कहा कि नर्सरी के बच्चे पहली बार घर से बाहर निकलते हैं. इसके साथ ही स्कूल का माहौल बच्चों के लिए चैलेंजिंग होता है. वहीं जब टीचर्स बच्चों को एक्टिविटी कराते हैं तो उन्हें बच्चों के प्रोब्लम्स का पता चलता है. इसके बाद उन बच्चों की उनके अनुसार ही काउंसिलिंग की जाती है और परेशानी ज्यादा होने पर बच्चों के पेरेंट्स के साथ भी काउंसिलिंग की जाती है.
डिजिटल शिक्षा बच्चों के लिए क्यों जरुरी ?
प्रिंसिपल स्वर्णा मिश्रा के अनुसार, चूंकि आज का युग डिजिटल युग है, इसलिए बच्चों के लिए डिजिटल शिक्षा बहुत ही महत्वपूर्ण है. डिजिटल शिक्षा का फायदा कोविड के दौरान देखा गया, जब बच्चों को पूरे 2 साल इसी माध्यम से पढ़ना पड़ा. इसलिए ये बच्चों के लिए बेहद जरुरी है.
बच्चों का मानसिक विकास कैसे हो ?
बच्चों के मानसिक विकास के लिए उन्हें फील्ड विजिट कराना चाहिए. इसके लिए उन्हें चेशायर होम, ओल्ड ऐज होम और अनाथालय ले जाएं. प्रिंसिपल स्वर्णा मिश्रा ने बताया कि जब वह अपने विद्यालय के बच्चों को इन जगहों पर ले गईं तो उनके विद्यालय के बच्चे भावुक हो गए. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि बच्चों ने यह सब पहले कभी नहीं देखा था. इससे उनके देखने और सोचने का नजरिया बदल जाता है और वे मानसिक तौर पर मजबूत बनते हैं।
बच्चों का अनुशासन और व्यवहार कैसा हो ?
बच्चों के अनुशासन और व्यवाहर को लेकर प्रिंसिपल स्वर्णा मिश्रा ने कहा कि अनुशासन में कड़ाई नहीं होनी चाहिए. बच्चों में बचपना होना बेहद जरूरी है. वहीं बच्चों को अपना गोल सेट करने दें और इसे पूरा करने के लिए समय दें. बच्चों को क्या बनना हैं, यह उन पर नहीं थोपना चाहिए. उन्होंने ये भी कहा कि पेरेंट्स दिन भर में एक बार अपने बच्चों के साथ जरूर खाना खाएं। इससे बच्चे जुड़ाव महसूस करते हैं.