नई दिल्ली: एकादशी व्रत के दौरान चावल न खाने की मान्यता है। इस मान्यता के बारे में जानने से पहले हमें जान लेना चहिए कि एकादशी माता कौन थी।
जानें कौन थीं एकादशी?
एकादशी माता का जन्म उत्पन्न एकादशी को हुआ था। एकादशी एक देवी थीं, जिनका जन्म भगवान विष्णु से हुआ था। उन्होंने असुरों को परास्त करने में भगवान विष्णु की मदद की थी। इस पर प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने एकादशी को वरदान देना चाहा। एकादशी ने भगवान विष्णु से कहा कि उन्हें ये वरदान चाहिए कि जो भी मनुष्य एकादशी व्रत का पालन करेगा, उसके सारे पाप नष्ट हो जाएंगे और उसे बैकुंठ की प्राप्ति होगी। तब भगवान ने उस कन्या को एकादशी नाम दिया और उसे उसका मनचाहा वरदान दिया।
एकादशी पर चावल क्यों नहीं खाते हैं?
इस विषय पर अनिरुधाचार्य महाराज द्वारा एक कथा सुनाई गई है। उनके अनुसार, एक बार भगवान विष्णु ने एकादशी को सारे पाप नष्ट करने को कहा। जब एकादशी सारे पाप नष्ट करने गई तो कुछ पाप चावल में जाकर छिप गए। इस बात से नाराज़ होकर एकादशी देवी ने चावल को शाप दिया कि चावल ने पाप को जगह दी है, इसलिए एकादशी के दिन कोई भी चावल ग्रहण नहीं करेगा। ऐसा मानना है कि एकादशी के दिन सारे पाप चावल में होते हैं। इस वजह से इस दिन चावल खाने से परहेज़ किया जाता है।
व्रत का पारण :
एकादशी के दिन कोई भी चावल नहीं खाता है। पर उसके अगले दिन, व्रत करने वालों को व्रत का पारण चावल खा कर ही करना होता है।