नई दिल्ली: इस साल 7 सितंबर को गणेश चतुर्थी पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाई जाएगी। पूरे भारत में गणेश चतुर्थी की धूम मची हुई है। दुकानों में मूर्तियां बन रहीं हैं और बड़े जोर शोर के साथ पंडाल भी सजाए जा रहे हैं। जब हम सबके प्यारे बप्पा की पूजा की बात आती है, फूल, धूप और धुर्वा से उनकी पूजा की जाती है। उन्हें उनके पसंद के लड्डू, मोदक और फल का भोग भी लगाया जाता है। आइए जानते हैं ऐसी क्या वजह है कि, हर पूजा में इस्तेमाल होने वाला तुलसी का पत्ता बप्पा की पूजा में वर्जित माना जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, एक बार भगवान गणेश गंगा तट पर ध्यान कर रहे थे। इस दौरान धर्मात्मज की सुपुत्री तुलसी अपने विवाह की इच्छा लेकर तीर्थ भ्रमण पर निकली थीं। देवी तुलसी सभी तीर्थस्थलों के दर्शन करते हुए गंगा के किनारे पहुंची। उन्होंने देखा की भगवान गणेश तपस्या में लीन हैं।
रत्न जड़ित सिंहासन पर विराजमान थे गणेश
शास्त्रों के मुताबिक, गणेश जी रत्न जड़ित सिंहासन पर विराजमान थे। उनके समस्त अंगों पर सुगंधित चंदन लगा हुआ था। उनके गले पर परिजात पुष्पों के साथ-साथ स्वर्ण-मणि के अनेकों हार थे। उनके कमर में बहुत मुलायम रेशम का लाल पीतांबर लिपटा हुआ था।
गणेश जी ने ठुकरा दिया विवाह का प्रस्ताव
गणेश जी के इस रूप को देख देवी तुलसी मोहित हो गईं और उन्हें विवाह करने का निश्चय कर लिया। तुलसी ने जब विवाह की इच्छा से गणेश जी की तपस्या भंग कर दी, तो उन्होंने देवी तुलसी द्वारा ध्यान भंग किए जाने को अशुभ बताया। देवी तुलसी की विवाह की मंशा को जानने पर गणेश जी ने खुद का ब्रह्मचर्य बताकर उनका विवाह प्रस्ताव ठुकरा दिया।
विवाह प्रस्ताव ठुकराने से नाराज हो गईं तुलसी
विवाह प्रस्ताव के नकारे जाने पर देवी तुलसी क्रोधित हो गईं और गणेश जी को शाप दे दिया कि उनके एक नहीं, बल्कि दो विवाह होंगे। इसे सुनकर गणेश जी ने तुलसी को शाप दिया की उनका विवाह एक असुर से होगा।
तुलसी को हुआ अपने किए का पश्चाताप
इस बात को सुन देवी तुलसी को अपने किए का पश्चाताप हुआ। उन्होंने गणेश जी से क्षमा मांगी। इस पर गणेश जी ने कहा कि देवी तुलसी का विवाह शंखचूर नामक राक्षस से होगा। उन्हें भगवान विष्णु और कृष्ण की पूजा में शामिल किया जाएगा पर गणेश जी की पूजा में उनका इस्तेमाल वर्जित होगा।