क्या अब दलित आरक्षण का लाभ परिवार की एक ही पीढ़ी को मिलेगा, सुप्रीम कोर्ट में आरक्षण के कोटे में आए फैसले की हो रही समीक्षा
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति व जनजाति के रिजर्वेशन में कोटे को लेकर एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाया है। इसे लेकर समीक्षा का दौर शुरू हो गया है। लोग जानना चाहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का क्या मतलब है। सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला सुनाया है उसमें कहा गया कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के आरक्षण का फायदा कुछ ही जातियां ले रही हैं। बाकी जातियां पीछे रह गई हैं। जिस संविधान बेंच ने यह फैसला सुनाया उसमें सात जज थे। इन जजों ने छह अलग-अलग फैसला लिखा। बेंच में शामिल जस्टिस पंकज मित्तल ने अपने निर्णय में कहा है कि जिस परिवार ने एक बार आरक्षण का फायदा उठा लिया। उसे अगली पीढ़ी में आरक्षण का फायदा नहीं लेने देना चाहिए। इसका मतलब कि आरक्षण का लाभ एक परिवार को एक ही पीढ़ी तक मिलना चाहिए। कोर्ट ने कहा है कि इसे लेकर सरकार को नीति बनानी चाहिए। लेकिन, लीगल एक्सपर्ट मान रहे हैं कि कोर्ट के फैसले के इस हिस्से को लागू करना सरकारों के लिए काफी मुश्किल होगा।
क्या है आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता सचिन कुमार लोहिया बताते हैं कि पंजाब सरकार ने साल 2006 में जो कानून बनाया था। उसके सेक्शन 4 (2) में कहा गया था कि सरकारी नौकरी में 25 प्रतिशत आरक्षण अनुसूचित जाति को और 12% आरक्षण अन्य पिछड़ा वर्ग को दिया जाएगा। इसके सेक्शन 4(5) में कहा गया कि अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व सीटों में से 50% सीट वाल्मीकि और मजहबी सिखों के लिए आरक्षित की जाएगी। इस कानून के सेक्शन 4 (5 )को असंवैधानिक बताते हुए देवेंद्र सिंह नामक व्यक्ति ने इसे पंजाब हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। बाद में साल 2010 में हाई कोर्ट ने इस फैसले को संवैधानिक बता कर खत्म कर दिया था। अब सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने माना है कि अनुसूचित जाति को उसमें शामिल जातियों के आधार पर बांटना संविधान के आर्टिकल 341 के खिलाफ नहीं है।
एससी केटेगरी में भी क्रीमी लेयर बनाकर कुछ जातियों को किया जा सकेगा बाहर
अब एससी केटेगरी में क्रीमी लेयर बनाकर कुछ जातियों को रिजर्वेशन से बाहर जा सकेगा। लीगल एक्सपर्ट सचिन कुमार लोहिया के अनुसार फैसले में लिखा है कि राज्य अन्य पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित जाति रिजर्वेशन में भी क्रीमी लेयर की पहचान करने के लिए निर्णय ले सकती है। राज्य सरकार पर निर्भर करता है कि कोटे में कोटा जारी करने के लिए अनुसूचित जातियों को क्रीमी और नॉन क्रीमी लेयर में बांटना चाहती है या नहीं।
सिर्फ सरकारी नौकरियों में ही लागू होगा फैसला
लीगल एक्सपर्ट सचिन लोहिया बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सिर्फ सरकारी नौकरियों के लिए दिया गया है। यह सरकारी नौकरियों पर लागू होगा। शिक्षा संस्थानों में प्रवेश और संसद में आरक्षण को लेकर इस फैसले में कुछ नहीं कहा गया है। लीगल एक्सपर्ट का कहना है कि कोटे में कोटा देने की कोशिश पहले भी पंजाब, आंध्र प्रदेश, बिहार, तमिलनाडु, कर्नाटक आदि प्रदेशों ने की थी। लेकिन कामयाबी नहीं मिली।
लीगल एक्सपर्ट मानते हैं कि अनुसूचित जातियों के कुछ समूह इस फैसले के खिलाफ होंगे। जबकि, कुछ इसका समर्थन करेंगे। अब सारा खेल प्रदेश की सरकारों पर होगा। जिन लोगों को अब तक आरक्षण का लाभ नहीं मिल रहा है। वह समुदाय के लोग इस तरह के कोटे को लागू करने वाली सरकार के साथ हो जाएंगे। जैसे कि अगर कोई पार्टी कोटा में कोटा लागू करती है और जाति विशेष को वह कोटा दिया जाता है। वह जाति विशेष उस पार्टी के साथ हो जाएगा।
इन प्रदेशों को अधिक होगा फैसले का फायदा
माना जा रहा है कि राजनीतिक दल इसका फायदा उठा सकते हैं। जैसे कि भाजपा ने लोकसभा चुनाव में दलितों का वोट पाने के लिए योगी सरकार के दलित मंत्रियों को आगे किया था। राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि कोटे में कोटा के इस फैसले से देश के 17 प्रदेशों की राजनीतिक पार्टियां फायदा उठा सकेंगी। जिन प्रदेशों में अनुसूचित जाति की आबादी 15% या उससे ज्यादा है। हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु आदि ऐसे राज्य हैं। जहां अनुसूचित जातियों की 20% से ज्यादा आबादी है।